उनतीस फरवरी को दोहा में उनतीस अमेरिका के विशेष दूत जलमाई खालिजाद और तालिबान के संस्थापकों में एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बीच 'अफगानिस्तान में शांति हेतु संधि' नामक एक समझौते के जरिए अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज अमेरिकीकी वापसी की इबारत तय की गई है। इस संधि को खूब जोर-शोर से प्रचारित किया गया था। इस अवसर भारत, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के अलावा मध्य एशियाई मुल्क जैसे कि सऊदी अरब और तुकी के अलावा उन देशों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे, जो अफगानिस्तान में शांति स्थापना में किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं।
जी. पार्थसारथी हुए जान बचाकर भागना पड़ा था। राष्ट्रपति ट्रंप को विश्वास है तालिबान लड़ाकों की रिहाई को लेकर पहले ही गनी-तालिबानउनतीस फरवरी को दोहा में अमेरिका के विशेष दूत जलमाई अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी करवाने से 3 अमेरिका के बीच तीखी नोकझोंक हो चुकी है। अफगानिस्तान खालिज़ाद और तालिबान के संस्थापकों में एक मुल्ला अब्दुल नवम्बर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत की में समूचा राजनीतिक परिदृश्य गंदला हुआ पड़ा है क्योंकि गनी बरादर के बीच अफगानिस्तान में शांति हेतु संधि' नामक संभावना में मदद मिलेगीअफगान सरकार को खुद अपने पूर्व सहयोगियों के सवालों का एक समझौते के जरिए अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की शांति संधि के तहत अमेरिका को अगले 135 दिनों में अफगानिस्तान सामना करना पड़रहा है। वापसी की इबारत तय की गई है। इस संधि कोखूब जोर-शोर से में मौजूद अपने सैनिकों की संख्या घटाकर 8600 तकलानी है पाकिस्तान तालिबान के हक्कानी नेटवर्क को हरसंभव सहायता देते प्रचारित किया गया था। इस अवसर भारत, ईरान, पाकिस्तान, और अगले साढ़े नौ महीनों में बाकी बचे अमेरिकी सैनिक भी हुए उसे अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज करवाकर परोक्ष अफगानिस्तान के अलावा मध्य एशियाई मुल्क जैसे कि सऊदी वतनलौट जाएंगे। अफगानिस्तान में अमेरिका के सहयोगी रूप से अपना नियंत्रण बनाने पर दृढनिश्चयी है। हक्कानी नेटवर्क अरब और तुर्की के अलावा उन देशों के प्रतिनिधि भी उपस्थित मुल्क, जो ज्यादातर नाटो संगठन से हैं, वे भी इसी तरह अपने दक्षिण अफगानिस्तान के विशाल भूभाग पर काबिज होकर थे, जो अफगानिस्तान में शांति स्थापना में किसी न किसी रूप सभी सैनिक हटाएंगे। इसका अर्थ है कि अप्रैल 2021 तक अपनी हुकूमत चलाने को आतुर है। इसके अलावा जैश-एसे जुड़ेहुए हैं। अमेरिका अपने सभी सैनिक अफगानिस्तान से वापसबुला मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर, जो वर्ष 2001 में अमेरिकी-तालिबान समझौता सुदूर देशों में अमेरिकी सैन्य लेगा। इससे पहले राष्ट्रपति ट्रंप की पूरी कोशिशथी कि इस साल भारतीय संसद पर हुए हमले के अतिरिक्त पुलवामा आत्मघाती दखलअंदाजी में एक और विफलता का सूचक है। 3 नवम्बर को राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले मतदान से पहले हमले का भी मास्टर माइंड है, वहबहावलपुर स्थित अपने घर से अफगानिस्तान में अमेरिका का उलझाव 11 सितम्बर, 2001 किसी तरहसभी अमेरिकी सैनिकों की वतन वापसी करवालेंयब' है। अजहर के तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। को अल-कायदा आतंकियों द्वारा न्यूयॉर्क और वाशिंगटन डीसी जाहिर है अंदरूनी दबावों के चलते उन्हें पलायन तिथि आगे जैश के प्रकाशन 'मदीना-मदीना' में कहा गया है कि अमेरिकामें किए गए हवाई हमलों के बाद शुरू हुआ। हवाई हमले का सरकाने को मजबूर होना है। यह संधिसत्तासीन अफगान तालिबान संधिवास्तव में अमेरिका के विरुद्ध तालिबान के मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन तब अफगानिस्तान में सरकार के हलक में जबरदस्ती उतार दी गई है, हालांकि उसकी 'जिहाद' की 'बुलंद फतह' है। यह जीत ठीक वैसी है जो तालिबान मुखिया मुल्ला उमर का बतौर सम्माननीय मेहमान था। अपनी चुनौतियां अलग से हैं। अफगान सरकार ने अपनी कैद में जिहादियों ने पूर्वमहाशक्ति सोवियत यूनियन पर प्राप्त की थी9/11 के प्रतिकर्म में अमेरिका ने अपनी फौज को मौजूद तालिबान लड़ाकों को समझौते में तय की गई समय आगे जैश अपने देवबंदी हमबिरादर' तालिबान के साथ निकट अफगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई के लिए उतार दिया था, हालांकि सीमा के भीतर छोड़ने से इनकार कर दिया है। सहयोग करते हुए भारत में कट्टरवाद और आतंकवाद को बढ़ावा इस लड़ाई की कीमत उसे लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर के रूप में राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार को देश के देता रहेगा।' ईरानलंबे समय से तालिबान के विरुद्ध रहा है, चुकानी पड़ी है। इसमें अफगान सेना को हथियारबंद, प्रशिक्षित 'पूर्वमुख्य कार्यकारी अधिकारी' अब्दुल्ला- अब्दुल्ला से गंभीर लेकिन अपने सुर बदलते हुए अब वह भी तालिबान के संपर्क करने और उस देश की आर्थिक मदद पर खर्च हुए 140 चुनौती दरपेश है। हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मुख्य बिलियन डॉलर भी शामिल हैं। कुल 1,11,000 से ज्यादा मुकाबला गनी और अब्दुल्ला में था, लेकिन इसमें धांधलियों के दोहा में जब अमेरिका-तालिबान समझौता हो रहा था तब उसी दौरान अफगान सैनिक, सिविलियन और तालिबान लड़ाके इस युद्ध आरोपलगे हैं, जिससे क्षीण बहुमत लेकर आए अशरफ गनी की अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका के विशेष दूत जलमाई में होम हुए हैं। इस संघर्ष ने वियतनाम युद्ध की याद ताजा कर दीवैधता पर सवाल उठखड़ेहुए हैं। खालिज़ाद और रूसी विशेष दूत काबुलोव के बीच भी है, जिसमें आखिरकार अमेरिकियों को सैगोन स्थित अपने सीनेट ने देश के बृहद हित की खातिर गनी और अब्दुल्ला को अपने मुलाकात हुई थी। सूत्रों के मुताबिक इसमें समझ बनी थी कि दूतावासकर्मियों को आनन-फानन में हेलीकॉप्टरों से निकालते मतभेद तुरंत खत्म करने की अपील की है। सरकारी जेलों में बंद अफगानिस्तान में उभरती चुनौतियों से निपटने में रूस अमेरिका के साथ सहयोग करेगा। अफगानिस्तान से सटे पर्व सोवियत संघ के सदस्य देश जैसे कि ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के सुरक्षा संबंधी मामलों में रूस आज भी काफी महती भूमिका रखता है। इन मुल्कों को अपने क्षेत्र में मौजूद इस्मालिक अतिवादियों की तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंधों को लेकर गंभीर चिताएं व्याप्त हैं। स्वंय रूसको भी अपने इलाके में चेचन्या के सशस्त्र पृथकतावादी मुस्लिम आतंकियों से खतरा है, तालिबान इनको भी सहयोग देता आया है। चीन हालांकि अफगान मामलों पर ज्यादातर अपना रुखबनाने के लिए 'सदाबहार दोस्त' पाकिस्तान की सलाह से प्रभावित हुआ लगता है। चीन ने वर्ष 2001 में अफगानिस्तान की सत्ता से बाहर होने से पहले तालिबान नेतृत्व के साथ आर्थिक संबंध बना रखे थे। अफगानिस्तान घटनाक्रम पर भारत सरकार ने प्रतिक्रिया देने में व्यावहारिक और संयमित रुख रखा है। अफगान नागरिकों की सुरक्षा बनाए रखने के लिए भारत के लिए माकूल होगा कि वह आगे भी अपनी आर्थिक मदद उस मुल्क को जारी रखे। हमें राष्टपति अशरफ गनी और अब्दुल्ला के बीच मतभेद सुलझाने में लगे अन्य पक्षों का साथ देना चाहिए ताकि तालिबान से निपटने में एक संयुक्त मोर्चा बन सके। अगर जरूरत आन पड़े तो भारत को चाहिए कि अफगान, अमेरिका और रूस की सरकारों से सलाह के बाद अफगान सेना की शक्ति बढ़ाने में योगदान करने से गुरेज न करे। अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर भारत को उच्च स्तर पर लगातार नजर रखने की जरूरत है। यहां भारत को याद रखना होगा कि कैसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और जैश-ए-मोहम्मद के गठजोड़द्वारा अगवा कर कंधारले जाई गई इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 के अपहरणकर्ताओं का साथ तालिबान नेहरचंद दिया था। में है।