कर्मचारियों को तन्ख्वाहें समय पर मिल रही हैं, अफसरों और मंत्रियों की गाड़ियां फर्राटे भर रही है, हैलीकाप्टर उड़ रहे हैं। सितारा होटलों में सरकारी जलसे भी हो रहें और विदेश यात्राएं भी हो रही है। अवार्ड भी मिल रहे हैं और खूब फूल मालाएं भी पड़ रही हैं,अखबार और टीवी चैनलों में सरकार की प्रशस्ति के विज्ञापन भी चल रहे हैंयह सब देखकर हर किसी को लगता होगा कि उत्तराखंड बड़ा समृद्ध राज्य है, प्रगति पथ पर है। मगर सावधान, बहुत लंबे समय तक यह सब नहीं चल पाएगा। उत्तराखंड की यह रंगत' नजरों का धोखा है। फिलवक्त जो रंगीनी' और 'मौज' नजर आ रही है, वह सब उधार की है, राज्य के भविष्य की कीमत पर है। इसके पीछे एक भयावह सच छिपा है, सरकारें जिस पर पर्दा डाले हुई हैं। यह वाकई सच है कि कर्ज लेकर पिया गया घी अब राज्य के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। यह भी सही कि राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ जा रहा है, राज्य की आमदनी चवन्नी' और खर्चा अठन्नी' से भी ज्यादा है। कोई
Budget बैंक पाँचसीरुपये 106001 EYO RESERVE BR पय रिजर्व बैंक पाँच सौ रूपये 100701 QAB 09810 कि राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ जा रहा है, राज्य की आमदनी चवन्नी' और खर्चा अठन्नी' से भी ज्यादा है। (योगेश भट्ट) डेढ़ सौ करोड़ रुपए लुटा दिए जाते हैं, किसी को कोई कर्मचारियों को तनख्वाहें समय पर मिल रही हैं, परवाह नहीं । विभाग के खातों में रकम उपलब्ध होती अफसरों और मंत्रियों की गाड़ियां फर्राटे भर रही है, है फिर भी अफसर आरबीआई से 500 करोड़ के हैलीकाप्टर उड़ रहे हैं। सितारा होटलों में सरकारी कर्ज की लिमिट बना लेते हैं, तकरीबन 19 करोड़ जलसे भी हो रहें और विदेश यात्राएं भी हो रही है। रुपया अनावश्यक राज्य को ब्याज के रूप चुकाना अवार्ड भी मिल रहे हैं और खूब फूल मालाएं भी पड़ पड़ता है मगर अफसरों पर नकेल कसने वाला कोई रही हैं, अखबार और टीवी चैनलों में सरकार की नहीं । एक ही आधार कार्ड से सैकड़ों सैकड़ों राशन प्रशस्ति के विज्ञापन भी चल रहे हैं। यह सब देखकर कार्ड लिंक कर अपात्र लाभार्थियों को योजनाओं को हर किसी को लगता होगा कि उत्तराखंड बड़ा समृद्ध लाभ दिया जाता है और पात्र योजनासे बाहर कर दिये राज्य है, प्रगति पथ पर है। मगर सावधान, बहुत लंबे जाते हैं, लेकिन कोई सवाल उठाने वाला नहीं । समय तक यह सब नहीं चल पाएगा। उत्तराखंड की अस्पतालों से डाक्टर करार भंग कर डयूटी से गायब यह 'रंगत' नजरों का धोखा है। फिलवक्त जो हो जाते हैं, न उनसे चवसूली होती है न कोई खबर 'रंगीनी' और 'मौज' नजर आ रही है, वह सब उधार लेता है। यही नहीं ऐसेतमाम मसले हैं जो सरकारको की है.राज्य के भविष्य की कीमत पर है। इसके पीछे नजर नहीं आते । सरकार तो तब कोई एक्शन नहीं एक भयावहसचछिपा है,सरकारें जिसपर पर्दा डाले लेती जब कि एक्शन में किसी असरदार की किसी हुई हैं। यहवाकईसच है कि कर्जलेकर पिया गया घी की व्यक्तिगत दिलचस्पी नहीं हो जाती। अब राज्य के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। यह भी राज्य में अराजकता का अंदाजा कैग रिपोर्ट के सही है कि राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ जा रहा है, उस तथ्य से भी लगाया जा सकता है, जिसमें स्पष्ट राज्य की आमदनी 'चवन्नी' और खर्चा 'अठन्नी' से कहा गया है कि अकेले वित्तीय वर्ष 2017-2018 भी ज्यादा है। मगर जिस 'भयावाह' सच की बात में ही प्रदेश के तमाम विभागों ने व्यापक यहां की जा रही है वह यह है कि राज्य की बजट अनियमितताएंकी जिससे राज्यको 2271 करोड़के व्यवस्था में बड़ा झोल है। सरकार हर साल जो बजट राजस्व का नुकसान हुआ । यह आंकड़ा तो सिर्फ पास कराती है, वह तो सिर्फ एक 'ढोंग' है। लाखों समाज कल्याण, वन विभाग और खाद्य आपूर्ति आदि रुपयाखर्चकर बजट बनाना और उसे विधानसभासे सत्यमबजय कुछएक विभागों की लेखा परीक्षा से निकला हुआ है पास कराना महज एक 'रस्म' बनकर रह गया है। WEBDUNIA । इसमें अकेले वन विभाग में ही हजार करोड़से ऊपर राज्य में बजट मैनुअल की धज्जियां उड़ाते हुए हर की अनियमितताएं हैं, बाकी तमाम विभागों की साल बजट से बाहर जाकर सैकड़ों करोड़ खर्च कर संस्तुति के आधार पर बजट से अधिक किया गया अफसोस यह है कि सरकार चेताने के बाद भी मिलाकर क्या स्थिति होगी यहसोचकर ही डर लगता दिया जाता है और इसकी कानों कान किसी को खबर व्यय नियमित होता है। हैरानी की बात यह है कि चेतती नजर आ रही है। कैग की रिपोर्ट आईने में है। रिपोर्ट कहती है कि नियम ,कायदे कानून का नहीं लगने दी जाती। सरकारों ने कभी इस ब्यौरे को विधानसभा के समक्ष दिखा चुकी है कि अंदरूनी हालात बेहद नाजुक हैं, पालन किया जाता तो यह नुकसान कम किया जा रखा ही नहीं । बजट जैसे गंभीर वसंवैधानिकमामले रंगीन नजर आने वाली तमाम याजनाए आर आकड़ सकता था। टर्भाग्य देखिए कियह स्थिति तब है जब चलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं, नियम कहता है कि मसरकारकायहरवया स्पष्ट तौर पर सरकारी खजाने राज्य में विधानसभा से जो बजट पास होता है, उसके हवा हवाई' है। अभी तक तो हम तनख्वाह आर हर कोई जान रहा है कि राज्य कर्ज की बैसाखी पर अलावा सरकारी खजाने से एक भी रुपया खर्च नहीं पर विधायी नियंत्रण को चुनौती है। याजनाआ कालएकजलत थ, लाकन हालात यहा टिका है। किसी भी राज्य की व्यवस्था में कर्ज का किया जा सकता। मगर उत्तराखंड में इस नियम को कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख भी किया है कि तक पहुंच चुके हैं कि कर्ज की रकम और उसका बढ़ना चिंताजनक तो है. लेकिन मंशा सही तो इससे हाशिये पर धकेलते हुए अभी तक बीस हजार करोड़ यहकार्य विधायी मंशा के विपरीत है। साथ ही यह भी ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज उठाना पड़रहा है। कैग निपटना बढी चनौती नहीं हैयह ठीक उस बीमारी से अधिक रकम विधानसभा की अनुमति के बिना कहा है कि बजट से अधिक व्यय के सभी प्रकरणों ने तो यहां तक खुलासा किया है कि साल 2013 से की तरह है जो लंबे समय तक परेशान तो रखती है खर्च की जा चुकी है। बजट से इतर जाकर खर्च को नियमित करते हुए नियंत्रण अधिकारी के विरुद्ध 2017 के बीच राज्य ने जो कर्ज उठाया, उसका परंतु इसमें जीवन को खतरा नहीं होता । मौजूदा करने का यह सिलसिला आश्चर्यजनक रूप से साल __ कार्यवाही की जाए। पता नहीं सरकार इसको लेकर तकरीबन 75 फीसदी कर्ज के भुगतान और ब्याज में स्थिति में चिंताजनक हैबजट की व्यवस्था पर सवाल 2005 से लगातार चलता चला आ रहा है। साल कितनी गंभीर है. मगर इस मसले पर सरकार खर्च किया जा रहा है। राज्यको आकस्मितानिधिसे उठना और कर्ज की रकम का सही इस्तेमालन होना2005-06 के बजट में विधानसभा की मंजूरी के फिलहाल तो एक्शन में नहीं है। ऐसे में सरकार और जो रकम ली जा रही उसकी प्रतिपूर्ति तक नहीं कर पा आखिर कब तक झूठ और फरेब के भरोसे रहेगा बिना 663 करोड़ 50 लाख अधिक खर्च किये जाने सरकार के बड़े बाबूओं की मंशा पर सवाल खड़ा रहे हैं हम । अब सरकार के दावों की हीककत का उत्तराखंड? कब तक हकीकत से हम मंह छिपाएंगे? से शुरू हुआ सिलसिला 2015-16 में 2334 होता है। अंदाजा लगाइये,राज्य में क्या विकास हो रहा होगा? कभी तो जवाबदेही तय करनी ही होगी, कभी तो क्या याजनाए चल रहा हागा ? दूसरा आर राज्य म परिस्थितयों को बदलने की शुरूआत करनी ही होगी। 33 लाख तक पहुंच चुका है। इतना तो कहा कि अनियमितताओं के लिए दोषी को राजकोषीय घाटा 'सुरसा के मुंह' की तरह बढ़ता जा यह सही है कि शासन की व्यवस्थाएं रुकती नहीं हैं. नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक कैग अगर राज्य बख्शा नहीं जाएगा चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो रहा है, मतलब आमदनी के मुकाबले खर्च लगातार मगर यह भी सच है कि जो हालात हैं उनमें किसी भी में बजट व्यवस्था की समीक्षा नहीं करता तो इसका तकरीबनतीन महीने बीत चुके हैं कैग की इस रिपोर्ट बढ़ रहा है। राजकोषीय घाटा सालाना आठ हजार दिन बड़ा झटका लग सकता है। अभी भी नहीं शायद अभी खुलासा भी नहीं होता । मोटेतौर पर यह को पटल पर आए मगर अभी तक इसके लिए किसी करोड़ तक पहुंच चुका है, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि संभले. कछकडे निर्णय नहीं लिये तो किसी भी दिन परी कारस्तानी राज्य के बाबओं की नजर आती है। जिम्मेदार या जवाबदेह का नाम तक सामने नहीं इसकी भरपाई के लिए सरकार केंद्र से उम्मीद लगाये व्यवस्था पटरी से उतर जाएगी। जिम्मेदार सिर्फ वो जिस तरह साल दर साल बजटसेइतरखर्च करने की आया।काशसरकार इसे गंभीरता से लेती, अगर यह बैठी है। सरकार ही नहीं होगी जो बजट पेश कर उसे पास रकम बढ़ती जा रही है उससे लगता है कि राज्य के बड़े चूक है तो सबक लेती और अगर लापरवाही या यह संकेत राज्य के भविष्य के लिए कतई अच्छे बाबू इस खेल में दक्ष हो चुके हैं। कैग के मुताबिक जानबूझकर किया गया कारनामा हैतो जवाबदेही तय नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि इसकी परवाह है से परहेज करता है, बजट जैसे अहम सत्र को भी राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल से करती और जिम्मेदारों पर एक्शन लेती । मगर तमाम किसे? सरकार नव्यवस्था पर नियंत्रण करती है और हंगामे की भेंट चढाकर बजट में खेल करने वालों की लेकर मौजूदा सरकार के कार्यकाल तक बीस हजार दूसरी रिपोटों की तरह इसे भी हवा में उड़ा दिया गया न राज्य के संसाधनों को मजबूत करती है। विडंबना राह आसान करता है। उत्तराखंड का तो यही दर्भाग्य सात सौ अस्सी करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लगता है। संभवत-सरकार लाचार है, बहुत संभव है देखिए एक ओर सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस है, यहां के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि बजट से अधिक खर्च की गयी इस रकम को किजो मौजइस प्रदेश के राजनेता और अफसरले रहे के दावे करती है दूसरी ओर बड़े बाबू लोग बेखौफ बजट पर विभागवार विस्तृत चर्चा हुई हो, अच्छे विधानसभा से नियमित नहीं कराया गया। हैं वह बजट से इतर इसी रकम की देन हो । बहरहाल मनमाने तरीके से बजट ठिकाने लगाते हैं। सिस्टम में सुझाव आए हों । बहरहाल विधान सभा में सरकार बजट मैनुअल के मुताबिक यदि किसी स्थिति जब राज्य की बजट व्यवस्था पर सवाल है तो बजट अराजकता और लापरवाही का अंदाजा इससेलगाया इस बार भी बजट पेश करेगी, विपक्ष हल्ला करेगा। बजट से अधिक व्यय हो भी जाता है तो उसे में दिखाये जाने वाले हर सपने और हर योजना पर जा सकता है कि राज्य के कई जिलों में छह छह साल देखते है कोई चर्चा होती है या नहीं, कैग ने जो चिंता विधानसभा के समक्ष रखा जाता है और लोक लेखा सवाल उठ खड़ा होता है। बजट में जिस वित्तीय से राज्य में मुर्दो को सरकारी खजाने से पेंशन दी जा व्यक्त की है उसका समाधान होता है या नहीं । बजट समिति तय करती है कि बजट से अधिक खर्च के प्रबंधन का दावा किया जाता है वह भी खोखला रही है, कहीं कोई पूछने वाला नहीं। हजारों मिट्रिकटन की जिस व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा है, वह मामले में क्या किया जाए? लोक लेखा समिति की महसूस होता है। गेंहूं और चावल की अनावश्यक खरीद कर पर डेढ़ हटता है या नहीं?