विश्व के अनेक राष्ट्राध्यक्ष अपने देश की विजनता को अपनी अपनी सोच के अनुरूप संबोधित कर चुके हैं। जहां इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि तापमान में बढ़ोतरी होने के साथ साथ कोरोना का प्रकोप भी संभवतः समाप्त हो जाएगा वहीं पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संग्ठन ने यह कहकर दुनिया की चिंताएं और बढ़ा दी है कि गर्मी के मौसम में भी कोरोना पूरी तरह से प्रभावहीन नहीं होगा। हाँ तापमान अधिक बढ़ने से इसके प्रकोप में कमी जर आ सकती है। प्रायः अधिक गर्मी के मौसम में अधिकांश वायरस प्रभाव विहीन हो जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। परन्तु का जसा रहा है कि कोरोना वायरस एक ऐसा विलक्षण वायरस है जो 37 डिग्री सेल्सियस पर भी इन्सान के शरीर में जीवित रहता है। यही वजह है कि अभी तक कोरोना को निष्क्रिय करने वाले निश्चित व सटीक तापमानका अंदाजा नहीं लगाया जा सका है। कोरोना वायरस को लेकर अब तक जो भी दावे सामने आ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस वायरस को लेकर अभी कोई पुरक्षा अध्ययन नहीं है। अभी तक ऐसा माना जा रहा है कि तापमान बढ़ने पर ये वायरस स्वतः खत्म हो जाएगा या इसका प्रकोप बहुत कम हो जाएगा। हालांकि, इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। इसीलिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया को इससे गंभीरता से लड़ने तथा इससे बचाव के हर संभव उपाय अपनाने की सलाह दी है। कोरोना वायरस की भयावहता तथा इसके दुष्प्रभाव से लड़ने के उपायों से जूझते स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के बीच इसी कोरोना से जुड़े कुछ ऐसे कई बेतुके वैश्विक तथ्य भी हैं जो सोशल मीडिया से लेकर अनेक समाचार व संचार माध्यमों में प्रमुखता से दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर चूँकि इस वायरस की पहली शिनाखा चीन के वुहान शहर से हुई इसलिए सर्वप्रथम दुनिया ने चीन के लोगों के खान पान की शैली पर ही सवाल उठाना शुरू दिया। बाद में जब इसकी भयावहता और बढ़ीउस समय चीनसे अनेक कारणों से असहज रहने वाले अमेरिका सहित कई देशों व नेताओं ने पूरी तरह से चीन को ही इस वायरस के उत्सर्जन काजिम्मेदार बता दिया। अमेरिका को चीनने भी उसी भाषा में जवाब दिया और कहा कि चीन नहीं बल्कि अमेरिका इसके लिये जिम्मेदार है क्योंकि यह अमेरिकी सैनिकों बरा पैदा किया गया वायरस है।बीच बहस में शाकाहारी भी कूद पड़े,और मांसाहारी प्रवृति को ही कोरोना का जिम्मेदार बताने लगे। इसी बहस में इस्लामी ग्रुप से संबंधित लोगों का कूदना भी शायद जरूरी था तभी उस विचारधारा के लोगों ने यह बता डाला कि चीन में कि मुसलमानों पर चीन सरकार ने बड़े जुल्म ढाए थे इसलिए 'खुदा के कहर के रूप में यह वायरस अल्लाह का मेजा हुआ अजाब है। यह कथित अति उत्साही इस्लामी ग्रुप के लोग यहीं पर नहीं रुके बल्कि इनकी तरफ से एक वीडीओ ऐसी भी वायरल की गयी जिसमें यह दावा किया गया कि चीन के लोग कोरोना के कहर से पनाह मांगने के लिए कुरान शरीफ पढ़ है तथा इसे बाँट रहे हैं। परन्तु इस वर्ग की यह आवाज उस समय मद्धिम हो गयी जब ईरान में भी इसका भयंकर प्रकोप फैल गया और वहां के कई धर्मगुरु भी इसकी चपेट में आ गए। झना ही नहीं बल्कि कुछसमय के लिएतोकाबा शरीफका दैनिक तवाफ (परिक्रमा) भी स्थगित कर दिया गया। तर्कशीलों द्वारा भी इस अवसर अपनी तार्किक नजरों से देखा गया। इस वर्ग द्वारा जनमानस के बीच एक सवाल यह छोड़ा गया कि आज जबकि लगभग कोरोना प्रभाविया कोरोनाके दुष्प्रभावकी संभावना रखनेवाले देशों ने अपने सभी धर्मों के लोगों को उनके अपने अपने धर्मस्थलों पर उनके अपने शव देवताओं के समक्ष नतमस्तक होने के लिए रोक दिया। जबकि प्रायः किसी भी विपदा या संकट के समय सभी कथित धर्मभीरु लोग अपने अपने ईष्ट के आगे सिर झुकाते हैं तथा संकट से उबरने प्रार्थना करते हैं। परन्तु वही कथित धर्मपरायण वर्ग इस महाविपदा के समय एक बार फिर विज्ञान,अस्पताल तथा स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की शोध की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने के लिए मजबूर है। इस महाविपदा के समय में दुनिया का प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति जहाँ इस प्रलयकारी मर्ज की भयावहता को सुन सुनकर चिंताओं डूबता जा रहा है वहीं कोरोना पॉजिटिव लोगों की दुर्दशा तथा कई देशों में उनके प्रति अपनाए जाने वाले दर्दनाक रवैये से आहत है। इस समय पूरे विश्व में कोई मानवतावादी व्यक्ति,संस्था या संगठन अथवा देश ऐसा नहीं होगा जो किसी व्यक्ति समूह अथवा पूरे देश के लिए 'कोरोना प्रभावित होने जेसी दुर्भावना रखे।
'करुणा' जाएगी तो 'कोरोना' ही आएगा?