कोरोना केसाथलड़ेंइंसानियतकीभीजंग अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब शहर के ह्दय स्थल पर स्थित कालोनी का यह गार्डन फुदकते, खिलखिलाते बच्चों से गुलजार रहता था।टिकू, रिंकू

कोरोना केसाथलड़ेंइंसानियतकीभीजंग अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब शहर के ह्दय स्थल पर स्थित कालोनी का यह गार्डन फुदकते, खिलखिलाते बच्चों से गुलजार रहता था।टिकू, रिंकू, शहनाज,ओशीन और गुरनाम जैसे न जाने कितने ही नन्हे मुन्नों का कलरव यहां हरेभरे दरख्तों पर चहकते परिदों पर भी हावी हो जाता था। फुटबाल और बैट के लिए उठा-पटक और छीना-झपटी करते मोबाईल पर मशरुफ कई बच्चों की मम्मियां उन्हें सांझ ढलने का हवाला और पापा के आ जाने की धमकी के साथ तगादा कर कर केथक जाती थीं.. लेकिन आज इस उद्यान ही नहीं बल्कि पूरी कालोनी को जैसे सांप सूख गया है। कालोनी क्या सारे शहर में सन्नाटा पसरा हुआ है, लोग अपने घरों में सहमे कैद होकर रह गए हैं। ऐसा ही हाल शहर दर शहर और गांव दर गांव पूरे देश का है।महीने भर पहले दूर देश चीन से आईजानलेवा महामारी कोरोना का कहर पूरी दुनिया पर ऐसा टूटा है कि सभी अब कराह उठे कि-"उफ अब बस करो ना..।"


अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब शहर के ह्दय स्थल पर स्थित कालोनी का यह गार्डन फुदकते, खिलखिलाते बच्चों से गुलजार रहता था। टिंकू, रिंकू, शहनाज, ओशीन और गुरनाम जैसे न जाने कितने ही नन्हे मुन्नों का कलरव यहां हरेभरे दरख्तों पर चहकते परिदों पर भी हावी हो जाता था। फुटबाल और बैट के लिए उठा-पटक और छीना-झपटी करते मोबाईल पर मशरुफकई बच्चों की मम्मियां उन्हें सांझ ढलने का हवाला और पापा के आ जाने की धमकी के साथ तगादा कर करके थक जाती थी..। लेकिन आज इस उद्यान ही नहीं बल्कि पूरी कालोनी को जैसेसांपसूख गया है। कालोनी क्या सारे शहर में सन्नाटा पसरा हुआ है,लोग अपने घरों में सहमे कैद होकर रह गए हैं। ऐसा ही हाल शहर दर शहर और गांव दर गांव पूरे देश का है। महीने भर पहले दूर देश चीन से आई जानलेवा महामारी कोरोना का कहर पूरी दुनिया पर ऐसा टूटा है कि सभी अब कराह उठे कि-"उफ अब बस करोना..।" दिन दूनी रात चौगुनी की तर्ज पर सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही यह महाव्याधि एक के बाद एक मुल्क को लांघते हुए अपनी अपनी घरेलू व्याधियों और परेशानियों से जूझते हमारे देश में भी दबे पांव बिन बुलाए मेहमान की तरह कबघुसपैठ कर गयी पता ही नहीं चला। जब जागे तब तक देर हो चुकी थी, लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद की शैली में सरकार ने तत्परता दिखाते हुए एक के बाद एक सभी राज्यों में बढ़ते पीड़ितों और मौत के आंकड़ों को रोकने साथ इसकेफैलाव और बचावके लिए पीड़ित देशों की तरह ऐतिहासिक प्रयास किए। कोरोना से पूरा देश थर्राया ही नहीं वरन बुरी तरह आतंकित है। भारत में कोरोना का कहर तो कम नहीं था लेकिन इसका हौव्वा इससे अधिक था। टीवी, अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक दुनिया में तेजी से फैलती इस बीमारी और चौतरफा हाहाकार और इससे जागरुकता की ही खबरें चौबीस घंटे छाई हुई थीं। देश के कई शहरों में मंजर यह था कि पता नहीं चीन, इटली, इरान स्पेन जैसे दर्जनभर देशों की तरह आज यहां भी कितनी औरतों की मांग सूनी तथा माओंकी गोद उजड़ जाए और बहनों की कलाई सूनी हो जाए..। कितने बच्चे मोबाईल पर गेम भूलकर अपने दादा नानाओं का इंतजार करते रह जाएं...। सरकार ने युद्ध स्तर पर राहत और बचाव का अभियान तेज करते हुए "कोविड-19' केवायरसका संक्रमण रोकने अस्पतालों और होम आईसोलेशन में चिकित्सकीय और जागरुकता के प्रयासों केसाथ पूरे देश में तालियों, थालियों और घंटो तथा शंघों की गूंज के साथ 22 मार्चको एक दिन के ऐतिहासिक जनता कयूं के पहले पंद्रह दिनों के लिए स्कूल, कालेज, बाजार, दफ्तर बंद कर देने का ऐतिहासिक ऐलान कर दिया। संक्रमित देशों से मरीजों की आमद पर रोक के साथ हवाई सेवाओं और समंदर में जहाजों को बंद कर दिया और रेलों व बसों केभी पहिए थम गए। एक के बाद एक शहर लाकडाउन होते गए। नोटबंदी,मंदी और दंगों के बाद कोरोना का कहर दुबले पर दो आषाढ़ की तरह है। मुल्क के ठहर जाने से बीमारी केसाथ लोगों को आजीविका की चिंता भी कम नहीं है। बाजारों के साथखोमचे और रेहड़ियों और फास्टफूडसेंटरों तक केबंद हो जाने से रोज कमाकर खाने वालों के घरों में दो जून खाने के लाले पड़ने की नौबत आरही थी। लेकिनजान है तो जहान है वाली स्थितिथी। जगरुकतासमाय तक जा है। ___महानगर में तब्दील हो रहा आशा नगर भी इस महाबीमारी से जूझ रहा है। जूझ क्या रहा है यहां इसका कहर कुछ ज्यादा ही है। जितने कोरोना पजिटिव काल के काल में समा चुके हैं, अस्पतालों में भर्ती होने वाले पीड़ितों की तादाद रोज इससे कहीं अधिक बढ़ती जा रही है। बाजार और सड़कें सूनसान हैं। शहर के बीचोबीच स्थित सद्भावपुरम कालोनी में उम्रदराज सेवानिवृत्त शिक्षक विश्वास सान्याल, जिन्हें लोग गुरुजी के नाम से जानते हैं, अपनी विधवा बेटी शांति के साथ रहते हैं। अभी-अभी हांफते हुए घर लौटे हैं - "बेटा यह मास्क अच्छे से रख दे' और जरा टीवी आन कर दे..। देखें आज कुछ राहत की खबर है या बस लाशें ही गिनवा रहे हैं,शहर में तोमरघट सा सन्नाटा पसरा है..।,, उन्होंने अपनी लाठी रखते हुए कहा। आवाज सुनकर पानी लेकर पहुंची शांति ने कहा - "अरे पापा आप कोरोना का कहर पूरी दुनिया पर ऐसा टूटा है कि सभी बिना बताए कहां चले गए थे।, देख नहीं रहे हैं कैसे बीमारी फैली हुई है। "हां बेटा कोरोना तो पूरी दुनिया के साथ हमारे देश में भी तेजी फैल रहा है लेकिन दुष्ट और भ्रष्ट लोग ऐसे बुरे समय में भी कालाबाजरी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।, “देखो न दसरुपए केमास्क को तीस रुपए में बेच रहे हैं। पूरे देश के साथ सारी दुनिया में हाहाकार मचा है और यहां दलदल में फंसे राजनीतिक दलों के लोग अभी भी सत्ता के लिए जोड़तोड़ में लगे हुए हैं। रोजीबनी करने और खोमचेवाले भूखे मर रहे हैं लेकिन दुष्ट और दया धरम खो चुके स्वार्थी लोग अभी भी अपने स्वार्थ के लिए देश और जनता के पेट और पीठ में छुरा भोंकने से पीछे नहीं हट रहे हैं..। कमसे ऐसे महासंकट के विकट दौर में तो मुट्ठीभर बचे अच्छे लोगों की तरह इन बहुसंख्यक बुरे लोगों को भी सुधर जाना चाहिए।,, “पापा आप जैसे कितने ही टीचर्स की पूरी जिंदगी समाजसुधारने के लिए ऐसे लोगों को आदर्शवाद का पाठ पढ़ाते गुजर गई। जब यह जिंदगीभर नहीं सुधरे तो अब क्या सुधरेंगे। छोड़िए जाने दीजिए, आपके लिए नाश्ता तैयार करती हूं।,, शांति ने टांपिक बदलने की गरज से कहा। चश्मा साफ करते हुए बेचैनी से असंतुष्ट पिता ने कहा - ,नहीं बेटा, यह नाजुक घड़ी रेशम और मखमल पहनने के लिए अनैतिक कर्मों में ही लिप्त रहने की नहीं है बल्कि देश के साथ पीड़ितों की मदद के लिए एक हो जाने की है।, तबाही के मुहाने पर खड़ी दुनिया को प्रकृति यही पैगाम देना चाहती है। देखो न..कुछ भलमानुष लोग परमार्थ में जुटे हुए भी हैं..। इंसान वही है जो बुरे दौर से भी सबक लेकर कुछ अच्छा सीखे।, एकाएक उन्हें याद आया-“अरे हां आज डॉ. अमर घर आए कि नहीं?,, "नहीं आए पापा, डॉ. अंकल और आंटी हफ्तेभर से हास्पिटल में ही हैं। अस्पताल में मरीज बढ़ते जा रहे हैं। चिंटू को घर पर आया ही देख रही है, मैं भी कुछ देर के लिए चली जाती हूं।'' शांति ने मेज पर नाश्ते की प्लेट रखते हुए कहा। डॉ. अमर उनके पड़ोसी थे, जो एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। जर्मनी से मेडिकल की पढ़ाई के बाद रिसर्च स्कालर के रुप में भी कई डिग्रियां ले रखी थीं। अपने जादुई हुनर और सेवाभावी होने के कारण शहर ही नहीं, पूरा देश उन्हें वाकई में भगवान की तरह मानता है। जबसेकोरोना फैला है, वे चाय बिस्किट के भरोसे अस्पताल में रात दिन एक कर मरीजों के इलाज में जुटे हैं। उनकी पत्नी डॉ. नेहा भी उनकी मदद और पूरे सेवाभाव से रोगियों की तीमारदारी में लगी है। अचानक काल बेल की आवाज से सिलवटें पिता पुत्री की लंबी बातचीत टूटी..। शांति कौन है कहते हुए जब बाहर निकली तो पांच छह लड़के लड़कियां मास्क और सेनेटाईजर पकड़े खड़े थे। “दीदी हम लोग सहायता फाउंडेशन से आए हैं, यह मास्क रख लीजिए..। एक लड़के ने बेग से निकालते हुए कहा। अंदर से गुरुजी ने कहा- “नहीं बच्चों हम खरीद कर ले आए हैं, किसी और जरुरतमंद को दे दो।' शांति ने मास्कबेग में डाल रहे लड़के को पहचानने की कोशिश करते हुए कहा-"भईया आप तो वही हो न..जो दो ढाई महीने पहले मार खाते हुए विजय चौक पर लोगों की मदद कर रहे थे..?, "हां दीदी मेरा नाम अबुल है, दंगाई लोग चेतन भईया की दुकान लूट रहे थे, मेरे मदद करने पर मुझे भी बेदम मारा था।डॉ. अमर ने ही तो मुझे अस्पताल में नया जीवन दिया था।,, हम लोग सामाजिक संस्था फाउंडेशन से हैं, और कोरोना कैंपेन मे कालोनी में मास्क बांट रहे हैं। इस बीच गुरुजी विश्वास सान्याल भी बाहर आए और उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा- “शाबाश बच्चों..। तुम्हारे जैसे मददगार नौजवानों से ही यह गुलदस्ता महकेगा । जैसे महामारी का कोई जाति, धरम और मजहब नहीं होता, उसी तरह दंगाईयों का भी कोई जात पांत और दीन-धरम नहीं होता।,, बैंक्यू दादा जी कहते हुए सभी अगले फ्लैट की ओर चले गए। शांति ने किचन में जाते हुए कहा- “पापा अब आप नहालीजिए. फिर मैं चिंटू को देखने जाऊंगी, आया बता रही थी मम्मी पापा की जिद में कल रात उसने खाना भी नहीं खाया।,,अभी दरवाजा बंद कर विश्वाससान्याल बाथरुम की ओर जा ही रहे थे कि फिर किसी के दरवाजा थपथपाने और जोर से रोने की आवाज सुनाई दी। शांति ने दरवाजा खोला तो सामने बदहवाश हालत में चिंटू की आया खड़ी थी..। "दीदी दीदी जल्दी चलो न.., "बाबा को कल रात से तेज बुखार है। साहब और मेमसाब फोन भी नहीं उठा रहे हैं..। रो रो कर उसकी आंखें फूल गई हैं..।, विश्वास सान्याल ने बेटी की उम्र की आया को ढाढस बंधाते हुए कहा- "जा बेटी जल्दी जा.., मेरी चिंता मत कर मैं नहा खा लूंगा।,, शांति ने फटाफट आटेसेसने अपने हाथों को धोया और आया को पानी देने के बाद उसके साथ तेज कदमों से डॉ. अमर के घर पहुंची। बेडरुम में चिंटू बेसुध पड़ा था। उसका पूरा शरीर बुखार सेतपरहा था। शांति सोसायटी के लोगों की मदद से ओला टैक्सीसेचिंटूकोलेकरसीधेवह महात्मा गांधी अस्पताल पहुंची।ओपीडी पहुंचकर उसने रिशेप्सनिस्टकोडां. अमरकोचिंट्रके बीमार होने कीखबर करने कहा। रिशेप्सनिस्ट ने तुरंत इंटरकाम फोन पर विभाग में बात करने के बाद बताया कि डां. आईसीयू में है और डां. नेहा मेम ने कहलवाया है कि पर्ची बनवा लेंवे तुरंत ओपीडी पहुंच रही हैं। पांच मिनट बाद जब डां. नेहा पहुंची तो असिस्टेंड चिकित्सक डॉ. माधवी चिंटू का चेकअप कर चुकी थीं। नेहा को उन्होंने बच्चे को कोरोना होने की आशंका जताते हुए टेस्ट करवा लेते हैं कहा। डॉ. नेहा ने अपने आंसुओं को जज्ब करते चिंटू को सहलाते हुए उसे नर्सको वार्ड में ले चलने कहा। लिफ्ट में उन्होंने शांति को बताया कि डा.अमर पर बढ़ रहे सीरियस पेशेंट्स का बहुत प्रेशर है। वे देर रात तक वार्ड व आईसीयू में जूझते हैं फिर अपने डाक्टर्स रुम में कलिक के साथ पाजिटिव पेशेंट्स पर डिस्कशन व मेडिकल की मोटी मोटी किताबों की स्टडी करते रहते हैं।, शांति के चिंटू के साथ हास्पिटल में रुकने की इच्छा जाहिर करने पर डां. नेहा ने कहा कि- "नहीं. आपआया के साथ घर चले जाईये, अंकल अकेले हैं..।चिंटू को टेस्टहोते तक भर्ती करना पड़ेगा, वह शीघ्र ही ठीक हो जाएगा।,,आया कोफ्रैश होकर अस्पताल चले आने की बात कह शांति अपने घर लौट आई। हास्पिटल में दोपहर डां. नेहा ने पति डां. अमर को चिंटू के भर्ती होने और टेस्ट करवाने की जानकारी दी तो उन्होंने बड़े धैर्य से पत्नी के कंधे पर धौल जमाते हुए वार्ड में बेटे की खबर ली और नर्ससे रिपोर्टलानेकहा। तब तक उन्होंने टीवी पर भारत सहित कई देशों में कोरोना के मरीजों के बढ़ रहे आंकड़ों पर चिंता जताते हुए नेहा से कहा - "आज हमें अपनी बेबसी पर गुस्सा आता है, लेकिन बेशक इस जानलेवा डिसीज की इंतिहा इसके ट्रीटमेंट की खोज के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों का कान्फिडेंट बढ़ाएगी।,, दो नर्से चिंटू की रिपोर्ट डा. अमर को थमा चुकी थीं। उन्होंने जब रिपोर्ट पर नजर डाली तो उनके माथे की सिलवटें बढ़ गई..। उन्हें देख कर डां. नेहा की भी धड़कनें बढ़ने लगी और उन्होंने पति के हाथ से रिपोर्ट लपकते हुए जब देखा तो उनका कलेजा मुंह को आ गया..।चिंटू को साधारण बुखार नही बल्कि वह कोरोना पाजीटिव था..।अबकी बार नेहा के आंसूजज्ब नहीं हुए वरन रिपोर्ट पर टपकने लगे ।डा. अमर ने खुद को संभालने का उपक्रम करते हुए पत्नी को संबल बंधाते हुए कहा- "डोंट वरी नेहा..अपने चिंटूको कुछ नहीं होगा। हफ्तेभर में फर्स्ट स्टेज के दो मरीजों को ठीक कर चुका हूं। चिंटू भी हमारे साथ घर जरुर लौटेगा।,, लेकिन पांच छह दिन बाद भी चिंटू की सेहत सुधरने की बजाए गिरने लगी। इस बीच शांति भी पिता के साथ उसे देखने आई तो डां. नेहा ने उसे बताया कि चिंटू के पापा बाकी सीरियस पेशेंट्स और अमेरिका के विशेषज्ञों से वीडियो कान्फ्रेसिंग पर चिंटू के लिए जूझ रहे हैं। रातभर स्टडी कर रहे हैं, रात खाना भी नहीं खाया। दो दिन से मेरी मुलाकात नहीं हुई है।,, इस बीच अस्पताल में पेशेंट्स निरंतर बढ़ते जा रहे थे, हेल्थ मिनिस्टर केसाथ हुई मीटिंग में जब डां. अमर से चिंटू के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “सर मैं तो चाहता हूं मेरा बेटा और देश के सभी पेंशेट्स के साथ पूरी दुनिया के मरीज जल्द ठीक हो जाएं। इसके लिए मुझे आपकी मदद की जरुरत है।,, मंत्री ने कहा- "डॉ.अमर देश को आप जैसे काबिल डांक्टरों पर नाज और भरोसा है।,, देर रात को अपने कमरे में कैदडां.अमर आईसीयू में बाकी मरीजों को देखने के बाद जब अपने बेटे के बेड पर रुके तो पत्नी डॉ. नेहा को उनकी आंखों में चिंता के साथ चेहरे पर बढ़ा आत्मविश्वास भी नजर आया। उन्होंने बेटे केगालों को प्यार से सहलाते हुए अचानक नेहा का हाथ थाम लिया..- "नेहा हम जिस प्रोफेशन में हैं वह समर्पण और पेसेंस के साथ त्यागभी मांगता है। तुमने जीवन के हरमोड़ पर मेरा साथ दिया है, आज फिर तुम्हारी हौसला अफजायी चाहता हूं..।,, नेहा ने पति की आंखों को पढ़ते हुए कहा कि “हमारा घर चिंटू का इंतजार कर रहा है..।