बहुचर्चित मामलों में फैसले देने वाले पूर्व मुख्य न्यायाधीश रहा है कि सेवानिवृत्त होने के बाद जजों को लाभ के पदों पर पीरियडका है। यह कहा जा सकता है किसेवानिवृत्ति से पूर्व दिये रंजन गोगोई के राज्यसभा के लिये मनोनीत होने पर विवाद उठना नियुक्ति में कम से कम दो वर्ष का अंतर रखा जाना चाहिए। यह गये फैसले के बाद नौकरी की इच्छा से वह प्रभावित हो सकते हैं। स्वाभाविक था। गोगोई बीते नवंबर माह में ही सेवानिवृत्त हुए थे। बात भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे और कानूनी मामलों के जानकार यही वजह है कि एक न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति और सरकार उनके इस पद के लिये हां कहने से न्यायपालिका की साख पर अरुण जेटली ने जोर-शोर से उठायी थी। मगर विडंबना यहहैकि द्वारा उनकी नियुक्ति के बीच दो साल का अंतर रखने की बात सवाल उठाने का मौका कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को मिल गया राजनीतिक दलों की सोच विपक्ष से सत्ता पक्ष में आने के बाद होती है। यहां विवाद का विषय उनकी मनोनयन की तीव्रता को है। निसंदेहन्यायपालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता इस बात पर बदल जाती है। ऐसा भी नहीं है कि रंजन गोगोई राज्यसभा के लेकर है, मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होने के सिर्फ चार माह निर्भर करती है कि वह कार्यपालिका से कितनी सुरक्षित दूरी लिये मनोनीत किये जाने वाले पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं। बाद ही उन्हें राज्यसभा के लिये नामित किया गया हैबनाये रखती है। संविधान भी इस बात पर बल देता है कि उनसे पूर्व भी पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा को भी कांग्रेस कांग्रेस पार्टी गोगोई के मनोनयन को लेकर सवाल उठा रही न्यायपालिका कार्यपालिका से दूरी बनाये रखने के लगातार पार्टी ने राज्यसभा में भेजा था। मगर यहां सवाल सेवानिवृत्ति के है। मगर नैतिक धरातल पर वह कहीं ऊंचे स्थान पर खड़ी नजर प्रयास करेगी। राजनीतिक हलकों में इस बात पर विमर्श चलता बाद न्यायाधिकरणों या आयोगों में नियुक्ति का कूलिंग-ऑफ नहीं आती। वर्ष 1998 में कांग्रेस ने पार्टी टिकट पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा को उच्च सदन में भेजा था। ये वही भूमिका रही थी। ऐसा नहीं है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की रंगनाथ मिश्रा थे, जिन्होंने 1984 के दंगों के लिये गठित आयोग दूसरी पारी से जुड़े विवादों को यह अकेला मामला हो, इससे पूर्व के जरिये दिल्ली दंगों के लिये कांग्रेस पार्टी को क्लीन चिट दी थी। वर्ष 2014 में पी. सदाशिवम को चीफ जस्टिस पद से रिटायर यही नहीं, सेवानिवृत्ति के बाद नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली होने के बाद केरल का राज्यपाल बनाया गया था,?जिसको लेकर कांग्रेस सरकार ने पहले मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष भी खासा विवाद हुआ था। ऐसे ही कई मामले इंदिरा गांधी के उन्हें नियुक्त किया था। जाहिरा तौर पर आम धारणा है कि प्रधानमंत्री काल के दौरान भी सामने आये थे। भारत के पूर्व चीफ न्यायमूर्तियों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकार की ओर से दिये जा जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह को सेवानिवृत्ति के बाद भारत का रहेकिसी भी तरह केलाभ के पदको स्वीकार नहीं करना चाहिए। उपराष्ट्रपति बनाया गया था। इसी तरह भारत की महिला चीफ जिसेवेलोकतंत्र में अलिखित सिद्धांतों की तरहदेखते हैं। गोगोई जस्टिस एम. फातिमा को रिटायरमेंट के बाद तमिलनाडु का के मामले में यह इसलिये भी जरूरी हो जाता है क्योंकि वे कई राज्यपाल बनाया गया था। निसंदेह आम जनता में ऐसा कोई बेहद संवेदनशील मुद्दों पर दिये गये फैसलों से जुड़े रहे हैं। इनमें संदेश नहीं जाना चाहिए कि न्यायापालिका कार्यपालिका के अयोध्या व राफेल से जुड़े मामले?भी शामिल रहे हैं। इसी तरह प्रलोभन या दबाव में काम कर रही है। उसकी स्वतंत्र पहचान ही असम में एनआरसी के क्रियान्वयन से जुड़े मामलों में भी उनकी न्यायपालिका की साख को कायम रख सकती है।
राज्यसभा में गोगोई