__ संजय वर्मा भारत में असमान विकासका अहम कारण वहां विकास की अनेक परियोजनाओं का राजनीतिक प्राथमिकता के आधार पर तयन होना है। इससे कुछ क्षेत्र विकसित हुए. तो कुछ अविकसित रह गए। विडंबना यह है कि विकास का ज्यादातर लाभ भी उन्हीं शहरों को मलाह,जहा पहल स तमाम सदलियतें मौजट । उदारीकरण के बाद भारतीय और विदेशी कंपनियों ने नई जगहों पर कारखाने लगाने या ढांचागत विकास करने की जहमत नहीं उठाई। वैश्विक संकट का एक प्रयोजन दुनिया की सभ्यताओं के परीक्षण का भी हो सकता है कोविड-19 यानी कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थितियों में यह संदर्भ और भी प्रासांगकही चलाह।
a दनिया में चीन लाख संक्रमित लोगों और दस सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर किस ॐजार से ज्यादा मौतों के साथ सवाल तो कई पैमाने पर हम शहरों को गांव-कस्बों से बेहतर उठ रहे हैं, पर इसकाएकचिंताजनक पहलूयह मानें, जब यहां रोजी-रोजगार ही नहीं, बल्कि सामने आया है कि कोरोना के सबसे ज्यादा तमाम मुसीबतों के चलते जीवन ही हर वक्त अहम निशाने पर दुनिया के वे बड़े और चमचमाते संकट में पड़ारहता है। कभी यहां वाहनों से होने शहर हैं, जिन्हें हर किस्म की समृद्धि का प्रतीक वाले प्रदूषण के कारण पैदा हुआ मांग माना जाता है। हम इस तथ्य को चाह कर भी जानलेवा बनजाता है, वो कभी वातायातजाम, नहीं भूल सको कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति जरा-सी बारिश में बाढ़ के हालात पैदा हो जाने प्राथमिकता का केंद्रचीनकाएक आधुनिक शहरवानथा, और छोटी-सी बीमारी के महामारी में बदल जहां से फैलने के बाद इसने ईरान, इटली, जाने का खतरा बन जाता है। कोरोना तो फिर तयन दक्षिण कोरिया, ब्रिटेनसमेत यूरोप-अमेरिका के भी एकबड़ी वैश्विक आपदा है, पर आबादी के कई शहरों को चपेट में ले लिया है। इटली और मुकाबले ढांचागत विकास पर पड़ रहे दबावों ब्रिटेन में पूर्ण बंदी (लॉकडाउन) करनी पड़ी है, की कसौटियों पर ही जब हम अपने शहरों को कुछ वो न्यूयार्क में फैले संक्रमण की वजह से कराते हैं.वो शहरीकरण की योजनाओं की चूलें अमेरिका के सामने भी हालात पूर्णबंदी जैसे ही हिलती नजर आती हैं। आबादी धनत्व की है। विडंबना यह है कि इस वक्त दुनिया की समस्या ऐसी है कि इसकी वजह से आज लोगों आधी आबादी शहरों में निवास कर रही है, को अलग-थलग करने की जो जरूरत पैदा हो जिससे कोरोना के खारे का अंदाजा लगाया जा रही है, उसे पूरा करने में शहरों का दम फूल ज्यादातर सकता है। ऊंची-ऊंची अझालिकाओं से पटे जाएगा। वर्ष 2017 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम अत्याधुनिक शहरों के विकास की हैसियत (डब्ल्यूईएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के सामने कितनी बौनी हो गई बांग्लादेश की राजधानी ढाका दुनिया की सबसे है, इसकी मिसाल अमेरिका में वाणिज्यिक गर्ग और आईजलवायुका कोई भेद मायने नहीं ओर झुकने वाला है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक धनी आबादी वाला शहर था, जहां जनसंख्या गतिविधियों के कद्र के पगविख्यात न्यूयार्क रखता। ग्रीनलैंड जेसे ठंडे देशों में भी कोरोना 2035 तकन शहरों की स्थितियों में भी काफी धनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 44,500 है। राज्य ने 20 मार्च, 2020 को ही पेश कर दिया, की उपस्थिति दर्ज की जा चुकी है, तो गर्म शहर बदलाव देखने में आएगा। हो सकता है कि उस लेकिन हमारी मुंबई इससे ज्यादा पीछे नहीं है, जब वहां एक दिन में ही कोरोना संक्रमण के एक दुबई, नमी वाले शहर मुंबई और मौसम के समय तक चीन के शहरों की आर्थिक विकास जा यह औसत प्रति वर्ग किलोमीटर 31700 विदेशी हजार सात सौ तिरसठ मामले सामने आ गए। मामले में दिल्ली जेसे सूखे शहर भी इसकी जद दर (जीडीपी) दोगनी हो जाए और ये युरोप जन है। शहरों में आबादी का बोझ बढना भारत के शहरों में इस वायरस के प्रकोप का में आ चुके हैं। शहरों की और समस्याओं सेतो तथा अमेरिका के ज्यादातर नामी शहरों को पीछे विकास के असंतुलन को दशा है। इसलिए जगहों आलम यह रहा कि इसी दिन महाराष्ट्र सरकार हम पहले ही परिचित रहे हैं। जैसे गंदगी से छोड़देंहालांकि रिपोर्ट ने यह भी कहा था कि कि शहरों को रोजगार का इकलौता केंद्र मान ने अपने चार प्रमुख शहरों मुंबई, नागपुर, पुणे बजबजाते खुले मेनहोल, टूटी पाइपलाइनों बदलावों के बावजूद न्यूयॉर्क, गोक्यो, लंदन लिया गया है और लोगों को उनके मूल स्थानों और पिंपरी चिंडवड़ को मार्चतकसंपूर्ण बंद और कचरे के ढेर तमाम शहरी चकाचौंध के और लॉस एंजिलिस तब भी चोटी की शाहरी पर रोजगार हासिल नहीं है। करने की घोषणा कर दी थी। बीच भी नजर आजाते हैं। कथित तौर पर स्मार्ट महाशक्ति होंगे। भारत में असमान विकास का अहम शहरों में केंद्रित ये घटनाएं इसका जीता- शहर परियोजना के तहत आने वाले एकाध इसमें बदलाव यह हो सकता है कि पेरिस कारण वहां विकास की अनेक परियोजनाओं । जागता सबूत बन गई है कि जिन शहरों को पूरी शहरों काही हाल थोड़ा बेहतर होगा, अन्यथा शीर्ष पांच शहरों के क्लबसे बाहर हो जाए और काराजनीतिक प्राथमिकता के आधार पर तवन दुनिया ने अपने विकास की कहानी कहने का स्थिति यह है कि किसी भी शहर के कुछेक उस सूची में दो चीनी शहर शेनझेन और होना है। इससे कुछ क्षेत्र विकसित हुए, तो कुछ जरिया बना लिया था, उन सारे शहरों को आंख इलाकों को छोड़कर शेष हिस्सों में गंभीर किस्म क्वांगझाऊ इसमें अपनी जगह बना लें। इसी अविकसित रह गए। विडंबना यह है कि विकास से नहीं दिखने वाला वायरस किस कदर चौपट की अराजकता पसरी रहती है। तरह इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता एक नए का ज्यादातर लाभ भी उन्हीं शहरों को मिला है, कर सकता है और कैसे उनकी केंद्रीकृत हालांकि यह सही है कि पिछले कुछ वक्त शक्ति केंद्र के रूप में उभर कर सामने आ जाए। जहां पहले से तमाम सहूलियतें मौजूद थीं। व्यवस्थाओं को धराशायी कर सकता है। यह से शहरों को काफी उम्मीदों के साथ देखा जा इस रिपोर्ट में केज विकसित होते भारतीय शहरों उदारीकरण के बाद भी भारतीय और विदेशी संक्रामक सोचने को मजबूर कर रहा है कि हम रहा है। इसमें भी सबसे ज्यादा उम्मीदें एशिवाई केकसीदे यह कहते हुए पढ़े गए थे कि 2019 से कंपनियों ने नई जगहों पर कारखाने लगाने या यानी शहरों को रोजगार, विकास और हर किस्म की शहरों से ही लगाई गई हैं। दो साल पहले वर्ष 2035 की अवधि में तेजी से विकसित होते ढांचागत विकास करने की जहमत नहीं उठाई। सहूलियतों का केंद्र बनाने के बारे में एक बार 2018 में एक प्रतिष्ठित वैचारिक समूह शीर्ष बीस शहरों में से पहले सत्रह भारत के आज कोरोना के इस भीषण दौर में यह फिर गंभीरता से सोचें, क्योंकि एक ही झटके में ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने दुनिया के सात सौ होंगे। इनमें दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु और सूरत अफसोस हमें जरूर परेशान करेगा कि अगर यह ये शहर अनजान खतरों के केंद्र बन जाते हैं अस्सी शहरों की आर्थिक गतिविधियों और आदि के नाम भी गिनाए गए। लेकिन कोरोना विकास के विकेंद्रीकरणका काम सरकारें अपने और दुनिया की रफार थाम देते है। दुनिया के वर्ष की आबादी के धनत्व आदि मानकों की वायरस की चुनौती ने विकास के मानकों के रूप एजेंडे में लेती दो बड़े शहरों की तरह गांवएक सौ नब्बे देशों में पहुंच चुके इस वावरसने तुलना के बाद बड़े गौरव के साथ कहा था कि मेंशहरीकरण की अवधारणा को ही एक प्रकार देात सेझानापलायनन होता और जैसा संकट सिर्फ सरहदों को बेमानी नहीं ठहराया है, बल्कि अगले दस वर्षों में अर्थव्यवस्था का इंजन कहे से पलीता लगा दिया है। इस संकट ने आज हमारे शहरों के सामने उपस्थित हुआ है, यह भी साबित किया है कि उसके सामने ठंडी, जानेवाले शहरों का संतुलन पश्चिम से पूरब की शहरीकरण की बुनियादी सोच पर ही यह हम उसका मुकाबला आसानी से कर ले।।