महिला दिवसका औचित्य

महिला दिवसका औचित्य


महिला का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान बताना है। समाज में नारी के स्तर को उठाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत हैमहिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं की आध्यात्मिक,शैक्षिक, सामजिक, राजनीतिक और आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना,बिना इसके महिला सशक्तिकरण असंभव है। महिला सशक्तिकरण के दावे खब किए जाते हैं। सरकारी और सामाजिक दोनों स्तरों पर। मगर वाकई महिलाएं कितनी सशक्त हुईं, यह न किसी से पूछने की जरूरत है और नहीकिताब के पन्नों को पलटने की।आज हर महिला समाज में धार्मिक रूढियों, पुराने नियम कानून में धार्मिकाटियों गोलियम कानन में अपने आपको बंधा पाती है। पर अब gp फकिरपाणपणाला अपायर सकती है,मन परुषों का साथ मिलेगा तो काम जल्दी हो जाएगा। कि हर महिला तमाम रूढि


in 12 1 (ज्योतिमांझी) ...यहसब हमारे पुरुष वर्गकोशोभा नहीं देता। इससे अच्छा यही होगा महिला का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान कि हम महिला दिवस मनाना ही भूल जाएं। अगर सच में महिलाओं बताना है। समाज में नारी के स्तर को उठाने के लिए सबसे ज्यादा के प्रति हमारे मन में आदर और सम्मान है तो सबसे पहले हमें चाहिए जरूरत हैमहिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि हम उन मां, बहन, बेटियों, बहुओं और उन मासूम बच्चियों के महिलाओं की आध्यात्मिक, शैक्षिक, सामजिक, राजनीतिक और प्रति पहले ते अपना नजरिया बदलें और उन्हें हीन दृष्टि से देखना बंद आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना, बिना इसके महिला सशक्तिकरण करें।पराए घरकी किसी महिला या लड़की कोहम हमारी घर की बेटी असंभव है। महिला सशक्तिकरण के दावे खूब किए जाते हैं। सरकारी समझ कर उन्हें भी उसी नजरिए देखें, जोनजरिया हम अपनी मां और और सामाजिक दोनों स्तरों पर। मगर वाकई महिलाएं कितनी सशक्त बहनों के लिए रखते करते हैं। महिला दिवस मनाने का केवल यह यह न किसी से पूछने की जरूरत है और न ही किताब के पन्नों को मतलब नहीं है कि एक दिन तो बहुत ऊंचे स्थान पर बैठाकर मानपलटने की। आज हर महिला समाज में धार्मिक रूढियों, पुराने नियम सम्मान दे दिया जाए और दूसरे ही दिन राह चलती लड़कियों से कानून में अपने आपको बंधा पाती है। पर अब वक्त है कि हर महिला छेडख़ानी शुरू कर दी जाए। यहां युवा तो युवा, बुजुर्ग भी इन मामलों तमामरूढियों से खुद को मुक्त करे। यहकाम एक महिला अकेले कर में पीछेनहीं है। रास्ते चलते महिलाओं-लड़कियों पर फब्तियां कसना सकती है, मगर जब पुरुषों का साथ मिलेगा तो काम जल्दी हो इनकी आदत शुमार में है और सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो तब हो जाएगा। देखा जाए तो प्रकृति ने औरतों को खूबसूरती ही नहीं, दृढ़ता जाती है जब हैवानों का दल 3-5 साल की मासूम बच्चियों को भी दी है। प्रजनन क्षमता भी सिर्फ उसी को हासिल है। भारतीय समाज अपना निशाना बनाने में नहीं चूकते और मौका देखते ही उनका आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे कत्य दिन-रात किए जा रहे हैंशीलहरण करके उन्हें नारकीय जीवन में पहुंचा देते है। अंतरराष्ट्रीय आज जरूरत है कि देश में बच्चियों को हम वही आत्मविश्वास और महिला दिवस के इतिहास को देखा जाए तो करीब 100 साल पहले हा इसस प्रकृति का सतुलन बना रहा जाने के लिए उसे आधुनिक घटनाओं, ऐतहासिक गरिमामयी परिचय देगी और राष्टनिर्माण में अपनी प्रमुख भूमिका निभाएगी। मजदूर महिलाएं काम के घंटे कम करवाने, बराबर वेतन पाने और इसलिए जरूरी है कि इस धरती पर कन्या को भी बराबरका सम्मान जानकारी और जातीय क्रियाकलापों से अवगत कराने के लिए उसमे जानकारी और जातीय क्रियाकलापों से अवगत कराने के लिए उसमे महिला दिवस का एक स्याह पहल भी है। सवाल यह भी है कि महिला दिवस का एक स्याह पहल भी है। वाट डालनकआधकारकालकरलडाइलडरहा था पर आजाजस मिले। साथ ही उसकी गरिमा भी बनी रहे। एकनारी के बिना किसी भी आर्थिक, सामजिक, शैक्षिक, राजनैतिक चेतना पैदा करने की। महिला दिवस की एक दिन की औपचारिकता क्यों। ऐसा नहीं है कि तरह से महिला दिवस मनाया जा रहा है वो उसके उलट है क्योंकि व्यक्ति का जीवन सजित नहीं हो सकता है। जिस परिवार में महिला समेत जिससे कि नारी परुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज को हमारे देश में देवी की पजा नहीं होती है। हमारा देश देवीकोपजता भी आज कपानया मुनाफा कमान क लिए मजदर माहलाआ (वाकग होती, वहां पुरुष नतो अच्छी तरहसे जिम्मेदारी निभा पाते हैं और आ आगे बढ़ाने में सहयोग कर सके। सही मायने में महिला दिवस तब है और हमारे सम्माननीय नारियों और देवियों के लिए नतमस्तक भी प क्लास वीमेन) से तय समय से ज्यादा घंटे काम करवा रही हैं। घर ही लंबे समय तक जीते हैं। वहीं जिन परिवारों में महिलाओं पर जिन पारवाराम माहलाआ पर सार्थक होगा जब असलियत में महिलाओं को वह सम्मान मिलेगा है। लेकिन फिर भी हमें महिला दिवस नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि संभालने वाली महिलाओं को आज भी उनके काम के लिए न कोई पारवार का जिम्मदारा हाता है, वहा माहलाए हर चुनाता, हर जिसकी वे हकदार हैं। इसके साथ ही समाजको संकल्पलेना चाहिए जहां मां, पुत्री, बेटी,लड़की, महिला या स्त्री के शीलधर्म की रक्षा नहीं सम्मान मिलता है और न ही कोई वेतन। उनके काम को उनकी और जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाती हैं और परिवार खुशहाल रहता कि भारत में समरसता की बयार बहे, भारत के किसी घर में कन्या अगर मजबती की बात की जाए तो महिलाएं परुषों से ज्यादा का रयान दो और भारत की किया भी बेटी को दहेजके नाम पर दिखाने का क्या औचित्य है। सिर्फ एक दिन के लिए महिलाआका सिर्फ उनकी जिम्मेदारी और कर्तव्य बताया जाता है और कभी भी की जा सकती, वहां महज एक दिन महिलाओं के प्रति वफादारी महिलाओं को मजदूर का दर्जा नहीं मिलता है। महिलाएं आज हर क्षेत्र मजबूत होती हैं क्योंकि वो पुरुषों को जन्म देती हैं। आज जरूरत है न जलाया जाए। विश्व के मानस पटल पर एक अखंड और प्रखर गुनगान करके उन्हें सम्मानदेना और दूसरी और उनकोछलना, उनके में काम करने के लिए आगे आ रही हैं और बहतसी महिलाएं आर्थिक समाज में महिलाओं को अज्ञानता, अशिक्षा, संकुचित विचारों भारत की तस्वीर तभी प्रकट होगी जब हमारी मातृशक्ति अपने साथ कपट भाव रखना, रास्ते चलते छेड़छाड़ करना, स्त्री को " रूपसे स्वतंत्र भी हैं पर क्या उनकी आर्थिक आजादी उन्हें सही मायने और रूढ़िवादी भावनाओं के गर्त से निकालकर प्रगति के पथ पर ले नकालकर प्रगात कपथ परल अधिकारों और शक्तिको पहचान कर अपनी गरिमा और गौरव का अधिकारों और शक्ति को पहचान कर अपनी गरिमा और गौरव का लज्जित करना, शराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट करना मआजाद कर पा रहा हैलज्जित करना शराब पीकर मनि


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